सत्ता की लालसा में भारत माता की लोकतांत्रिक आत्मा को कैदखाने में झोंक दिया था : डॉ. दुर्गेश केसवानी
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 25 जून 1975 की रात को वह स्याह स्याही बिखेरी गई थी, जिसने देश की आज़ादी के बाद सबसे बड़ा हमला जनता की आज़ादी पर किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सत्ता की लालसा में भारत माता की लोकतांत्रिक आत्मा को कैदखाने में झोंक दिया।
देश में लगा आपातकाल कोई सामान्य निर्णय नहीं था — यह सत्ता बचाने की साजिश थी, यह तानाशाही थी, यह जनता के मुंह पर तमाचा था। इंदिरा गांधी ने न केवल न्यायपालिका को झुकाया, बल्कि प्रेस की स्वतंत्रता को जंजीरों में जकड़ दिया। लाखों सच्चे देशभक्तों को जेलों में ठूंस दिया गया, रातोंरात नेताओं को उठाकर कालकोठरी में डाल दिया गया। जनता की आवाज़ को कुचलने के लिए पुलिसिया डंडे और सेंसरशिप का हथियार बनाया गया।
लेकिन साथियों, इस अंधकार में भी उम्मीद का एक दीपक प्रज्वलित हुआ — जनसंघ और उसके वीर सपूतों ने लोकतंत्र की इस लड़ाई में दुर्ग बनकर खड़े हो गए। अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, नाना जी देशमुख जैसे नायक जेलों में सड़ गए लेकिन तानाशाही के आगे घुटने नहीं टेके। उस समय की जनसंघ की यह ज्वाला बाद में भारतीय जनता पार्टी के रूप में प्रज्वलित हुई — और आज भी उसी लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा कर रही है।
जनसंघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं ने गांव-गांव जाकर लोगों को जगाया। चुप कर दी गई आवाज़ को फूटने वाला ज्वालामुखी बना दिया। अंधेरे में दीपक बने — और अंततः तानाशाही को धूल चटा दी। यह वही विचारधारा है जो कहती है — “सत्ता के सिंहासन को कुर्बानी से नहीं, जनसेवा से ही पाना चाहिए।”
आज जब कोई कांग्रेस लोकतंत्र की दुहाई देता है, तो इतिहास के इस काले पन्ने को याद कर लेना चाहिए। जो कभी पूरी राष्ट्र की आवाज़ को घोंट सकते हैं, वे लोकतंत्र के सबसे बड़े दुश्मन हैं। यह आपातकाल की सीख है कि जनता से बड़ा कोई नहीं — न कोई प्रधानमंत्री, न कोई पार्टी!
आइए, इस अमृतकाल में हम सब मिलकर उन वीर सेनानियों को नमन करें जिन्होंने जेल की सलाखों में रहकर भी लोकतंत्र की मशाल को बुझने नहीं दिया। जनसंघ और भाजपा के इसी त्याग और तपस्या ने भारत के लोकतांत्रिक स्वाभिमान को फिर से खड़ा किया।
जय लोकतंत्र! जय जनसंघ! जय भारतीय जनता पार्टी!
(लेखक भारतीय जनता पार्टी, मध्यप्रदेश के प्रदेश प्रवक्ता हैं)