प्रभु जगन्नाथ की मूर्ति में आज भी धड़कता है भगवान कृष्ण का दिल
जाने क्या है ‘ब्रह्मा पदार्थ’ का रहस्य और वास्तविकता
पुरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर की गहराइयों में अनेक दिव्य रहस्य समाहित हैं, जिनमें से सबसे रहस्यमय और भक्तों की गहन श्रद्धा का केंद्र है – ‘ब्रह्मा पदार्थ’ यानी भगवान कृष्ण का दिल जो आज भी जगन्नाथ की प्रतिमा में धड़कता है। यह वह रहस्यमयी तत्व है जो हर 12 से 19 वर्षों में होने वाली नबकल्बर परंपरा के दौरान पुरानी मूर्तियों से निकालकर नई मूर्तियों में स्थानांतरित किया जाता है। यह प्रक्रिया न केवल रहस्य से घिरी होती है, बल्कि इतनी गोपनीय होती है कि इसे करने वाले पुजारियों की आंखों पर भी पट्टी बंधी होती है।
ब्रह्मा पदार्थ क्या है?
‘ब्रह्मा पदार्थ’ (Brahma Padartha) को ईश्वर का जीवंत स्वरूप माना जाता है ऐसा तत्व जिसमें भगवान विष्णु की चेतना निहित है। यह कोई साधारण वस्तु नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक है। जो हांथ में लेने पर धड़कन महसूस होती है।पुराणों और शास्त्रों में इसका उल्लेख अत्यंत गुप्त और प्रतीकात्मक रूप में किया गया है।
कुछ मान्यताओं के अनुसार,जब भगवान कृष्ण को तीर लगा और वह पृथ्वी छोड़कर स्वर्ग को गए तो उनके शरीर का अंतिम संस्कार अर्जुन ने किया लेकिन उनका शरीर अग्नि में जल गया लेकिन हृदय को अग्नि नहीं जला सही और वह समंदर में होते हुए पूरी पहुंचा जो यह भगवान विष्णु के नाभिकमल से उत्पन्न तत्व का प्रतीक है, जो उनके ‘सनातन रूप’ की उपस्थिति को दर्शाता है।
नबकल्बर और ब्रह्मा पदार्थ का स्थानांतरण
जब नबकल्बर का समय आता है, तो मंदिर के विशेष सेवायत (पुजारी) दायती वंशज और महापात्र पूरी धार्मिक प्रक्रिया के साथ पुरानी मूर्ति से ब्रह्मा पदार्थ को निकालते हैं और उसे नई मूर्ति में स्थापित करते हैं।
यह प्रक्रिया पूरी रात होती है, और इस प्रक्रिया के दौरान पूरा शहर ब्लैक आउट होता है अंधेरे में, केवल चंद दीपों की रोशनी में। जो भी सेवक इस प्रक्रिया में शामिल होता है, वह व्रत, तप और ध्यान की विशेष स्थिति में रहता है। कहा जाता है कि इस दौरान अगर कोई उस दिव्य तत्व को देख ले तो वही भस्म हो जाए।