भगवान जगन्नाथ की मूर्ति निर्माण का रहस्य
भगवान श्रीजगन्नाथ की मूर्ति का निर्माण एक अत्यंत पवित्र, गोपनीय और विशिष्ट प्रक्रिया है, जिसे कोई साधारण व्यक्ति नहीं कर सकता। यह कार्य विशेष रूप से प्रशिक्षित और वंशानुगत कारीगरों द्वारा किया जाता है, जिन्हें “विश्वकर्मा सूत्रधार” या “महारण” कहा जाता है। ये कलाकार एक पारंपरिक काष्ठ शिल्पी वंश से आते हैं, जिनके पूर्वज सदियों से यह कार्य करते आ रहे हैं।
कौन बनाते हैं मूर्तियाँ?
1. विश्वकर्मा सूत्रधार वंश के कारीगर:
ये कारीगर पुरी के निकटवर्ती गाँवों से आते हैं और केवल वही मूर्तियाँ बना सकते हैं जो जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (Shree Jagannath Temple Administration – SJTA) द्वारा अधिकृत होते हैं।
उनका चयन उनके परिवार की वंशावली, आचरण, और धार्मिक प्रशिक्षण के आधार पर किया जाता है।
2. मुख्य मूर्तिकार (मुख्य महारण):
मूर्ति निर्माण का नेतृत्व एक वरिष्ठ और अनुभवी कारीगर करते हैं जिन्हें “बद्रा महारण” या “मुख्य सूत्रधार” कहा जाता है। यह व्यक्ति विशेष रूप से ब्रह्मा तत्व को स्थापित करने वाली मूर्ति की नक्काशी करता है।
मूर्ति निर्माण की प्रक्रिया कैसे होती है?
1. नबकल्बर अवसर पर निर्माण:
नई मूर्तियाँ हर 12–19 वर्षों में नबकल्बर (शरीर परिवर्तन) अनुष्ठान के दौरान बनाई जाती हैं।
यह कार्य लगभग एक महीने तक चलता है।
2. दरसन दारु (पवित्र नीम वृक्ष) का चयन:
मूर्तियाँ साधारण लकड़ी से नहीं बनतीं। प्रत्येक देवता के लिए एक विशेष नीम का पेड़ चुना जाता है, जिसे ‘दरसन दारु’ कहा जाता है।
यह पेड़ कई संकेतों और धार्मिक लक्षणों (जैसे – चिह्न, दिशा, आकार आदि) के आधार पर चुना जाता है।
3. गोपनीय निर्माण:
मूर्तियाँ कोणकार नामक स्थान पर एक अस्थायी निर्माणशाला में बनाई जाती हैं, जहाँ आम लोगों का प्रवेश वर्जित होता है।
कारीगर उपवास, नियम, पूजा और ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए मूर्तियों को बनाते हैं।
4. ब्रह्मा पदार्थ का स्थानांतरण:
सबसे पवित्र कार्य – ब्रह्मा पदार्थ को पुरानी मूर्ति से निकालकर नई में स्थापित करना – दायता पुजारियों द्वारा होता है, न कि कारीगरों द्वारा।
मूर्तिकारों की योग्यता और जीवनशैली
ये कलाकार मूर्ति निर्माण को ईश्वर की सेवा मानते हैं, न कि केवल एक कला।
वे जीवन भर इस परंपरा के अनुसार जीवन बिताते हैं: शुद्ध शाकाहारी आहार, नियमित पूजा, और धर्म-अनुशासन।
मूर्ति निर्माण के समय वे गोपनीयता, तपस्या और नियमों का कठोर पालन करते हैं।
निष्कर्ष
भगवान जगन्नाथ की मूर्तियाँ केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि जीवंत आत्मा की प्रतीक मानी जाती हैं। इन्हें बनाने वाले कारीगर साधारण मूर्तिकार नहीं, बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक कलाकार होते हैं जो अपने शिल्प को ईश्वरीय सेवा मानते हैं। उनकी कला, तपस्या और श्रद्धा से ही संभव हो पाता है यह दिव्य कार्य, जो आज भी भारत की प्राचीनतम परंपराओं में एक अद्भुत जीवंत उदाहरण है।