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Friday 1 August 2025
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सुलगता बंगाल… या खामोश बंगाल…

सुलगता बंगाल…
या खामोश बंगाल…

राष्ट्र की बात

शीतल रॉय

वक्फ बिल संशोधन के विरोध में बंगाल सुलग रहा है।जगह जगह हिंसा की घटनाएं देखने को मिल रही है। कई बेगुनाह इस हिंसा की बलि चढ़ चुके है…पर क्या सच में बंगाल सुलग रहा है,क्या यह पहली बार है जब वक्फ बिल के विरोध में बंगाल में अराजकता का माहौल है,मुर्शिदाबाद में हो रही हिंसा क्या सच में वक्फ बिल के विरोध में है या कहानी कुछ और … राजनीति और मीडिया की माने तो बंगाल सुलग रहा है… तो क्या सच में बंगाल सुलग रहा है या फिर खामोश है बंगाल …
चूंकि बंगाल की मिट्टी से मै जुड़ी हु तो मैं यही कहूंगी कि खामोश है बंगाल… और उसकी खामोशी के पीछे का कारण भी है और कारण है बंगाल का स्वर्णिम इतिहास…
बंगाल में कला, संगीत, साहित्य, और स्थापत्य का स्वर्ण युग रहा है।
प्रसिद्ध लेखक रवींद्रनाथ ठाकुर (टैगोर) ने अपने प्रसिद्ध गीत “আমার সোনার বাংলা” (आमार सोनार बांग्ला) में बंगाल की इसी सुंदरता और समृद्धि को भावनात्मक रूप से व्यक्त किया, जो आज बांग्लादेश का राष्ट्रीय गीत है।
बंगाल एक ऐसा क्षेत्र रहा है जहाँ हिंदू, बौद्ध, जैन, और बाद में मुस्लिम संस्कृति का अद्भुत संगम हुआ। यह विविधता ही आमार सोनार बंगला “सोनार” छवि का हिस्सा है।
तो फिर बंगाल क्यों सुलग रहा जबकि “सोनार बंगाल” न केवल भौतिक समृद्धि का प्रतीक है, बल्कि एक सांस्कृतिक और भावनात्मक पहचान भी है। बंगाल की रगों में संगीत है जो कला और संस्कृति के अलावा अपने जीवन में हिंसा की कोई जगह ही नहीं .. क्या कभी आपने सोचा है कि यह कौन लोग है जो हाथों में पुस्तक की जगह हाथों में हथियार लेकर निकल पड़े है,निश्चित ही यह बंगला वासी तो नहीं हो सकते…
बंगाल जाकर तो देखिए कि बंगाल की धरा में आज भी वही मिठास और वही सोनार बांगला की सोंधी खुश्बू मिट्टी में व्याप्त है तभी तो हर छोटा बड़ा व्यापारी पैसे,शोहरत,धनार्जन के पीछे भागने की बजाय दोपहर में घूम भात, मतलब लंच के बाद (दोपहर में नींद) लेना संस्कार में शामिल है। सुबह 9 बजे नींद से जागकर बंगाल को गली देने वालों के लिए यह जानना जरूरी है कि बंगाल का शांतिप्रिय व्यापारी सुबह 5 बजे अपना व्यापार शुरू कर देता है और 12 बजे मंगल कर देता है भले ही लाखों का नुकसान क्यों न हो जाए पर पैसे कमाने के लालच में परंपरा नहीं तोड़ता .. उसे प्यारा है तो परिवार के साथ लंच और दोपहर की नींद….
यह तो हो गई बंगाल की बात
अब बात करते है उन अराजक तत्वों की जो बंगाल को सुलगा रहे दअरसल बंगाल राजनीति की बलि चढ़ रहा बंगाल की राजनीति को समझना इस लिए भी आसान नहीं है कि वहां की सरकार जनता नहीं बल्कि सरकार खुद स्वयं को चुनती है, ममता बनर्जी का जो वोट बैंक है उसको मात देना किसी भी दल के बस में नहीं… मतदाता को लुभाया जा सकता है वोट बैंक खाली नहीं किया जा सकता ममता के वोट बैंक को समझने की जरूरत है,की किस तरह बंगला घुसपैठियों का वोट बैंक तैयार किया गया है जिसको ढहा पाना हर किसी के बस में नहीं जबकि उससे विपरीत सोनार बांगला का उच्च वर्ग मतदाता जो सरकार में बदलाव चाहता है वह तो वोट ही नहीं करता उसका भी कारण है ममता बनर्जी की मनमानी और चंदा वसूली से बचने के लिए उच्च वर्ग को बंगाल में बदलाव लाने की बात तो करता है लेकिन वोट नहीं डालता।
स्टार जलसा टी वी शो डॉ बाबू , में आकर प्रसिद्धि पा चुके बंगाल के जाने माने सर्जन बताते है कि बंगाल में यह पहली बार नहीं है जब वक्फ बिल के विरोध में दंगा हो रहा यह तो आम बात है कभी चुनाव में कभी राम नवमी पर कभी किसी आयोजन में ऐसे घटनाएं होती है,मीडिया में जो परोसा जाता है कि बंगाल सुलग रहा यह सरासर राजनीति है,बंगाल के लोग जानते है कि उन्हें क्या करना है पढ़े लिखे उच्च वर्ग के लोग राजनीति में पड़ना ही नहीं चाहते सबको पता है कि सरकार किसकी बनेगी .

.इसलिए बंगाल सुलग नहीं रहा बल्कि खामोश है.. और यह बदलाव की सुनामी के आने के पहले की खामोशी है जिस दिन बंगाल का कॉमन मैन मतदान करेगा बदलाव निश्चित है बस जरूरत है एक सेतु की जो आम आदमी को उस भरोसे की कड़ी से जोड़ सके भरोसा दिला सके कि वह उसकी रक्षा करेगा वरना राजनीति के नाम पर घुसपैठियों द्वारा यूं ही बंगाल को सुलगाया जाता रहेगा और बंगाल खामोश रहेगा जब तक खामोशी एक बवंडर का रूप न धारण कर ले….




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