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Sunday 3 August 2025
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सांसदों को दोनों सदनों में सार्थक और रचनात्मक संवाद की उच्चतम परंपरा अपनानी चाहिए – ओम बिरला

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कल कहा कि संसद सदस्यों को दोनों सदनों में सार्थक और रचनात्मक संवाद की उत्कृष्ट परंपरा को अपनाना चाहिए। संविधान सभा की गौरवशाली परंपराओं को याद करते हुए उन्होंने कहा कि संविधान सभा के सदस्य अलग-अलग विचारधारा रखते थे, लेकिन उन्होंने प्रत्येक अनुच्छेद पर विचार-विमर्श किया और पूरी गरिमा और सम्मान के साथ अपनी सहमति और असहमति व्यक्त की।

संविधान सदन में आयोजित 10 वें संविधान दिवस के अवसर पर स्वागत भाषण में बिरला ने सभी संसद सदस्यों से विधानमंडलों में सार्थक और सम्मानजनक संवाद की उच्चतम परंपराओं को अपनाने का आग्रह किया।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु, उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़, प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय मंत्री और संसद सदस्य 1949 में संविधान सभा द्वारा भारत के संविधान को अंगीकृत करने की 75वीं वर्षगांठ मनाने के अवसर पर उपस्थित थे।

बिरला ने संविधान निर्माण में बाबा साहेब अंबेडकर के योगदान को याद किया और कहा कि इससे हमें हमारे समाज के बारे में संविधान सभा के सदस्यों के विचारों को समझने में मदद मिलती है।

बिरला ने कहा कि संविधान देश में सामाजिक और आर्थिक बदलावों के पीछे प्रेरक शक्ति रहा है और राष्ट्र सामूहिक प्रयासों और महान संकल्प के साथ “कर्तव्य काल” में ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है।

बिरला ने संसद सदस्यों से आग्रह किया कि वे संविधान को अंगीकृत करने की 75वीं वर्षगांठ को अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में जन भागीदारी के साथ “उत्सव” के रूप में मनाएं, ताकि “राष्ट्र प्रथम” की भावना को मजबूत किया जा सके।

बिरला ने इस बात पर प्रकाश डाला कि संविधान न केवल एक कानूनी मार्गदर्शक है, बल्कि एक व्यापक सामाजिक दस्तावेज भी है। उन्होंने कहा कि संविधान ने लोकतंत्र के तीन स्तंभों- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच आपसी सामंजस्य के माध्यम से सुचारू संचालन सुनिश्चित किया है। उन्होंने कहा कि इन 75 वर्षों में तीनों शाखाओं ने देश की उत्कृष्ट सेवा की है।

बिरला ने कहा कि संविधान की सबसे बड़ी विशेषता इसकी परिवर्तनशीलता है। उन्होंने कहा कि बीते 75 वर्षों में कई महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं जो लोगों की बदलती आवश्यकताओं और अपेक्षाओं के अनुरूप हैं। उन्होंने कहा कि इन 75 वर्षों में संविधान के मार्गदर्शन में संसद ने आम लोगों के जीवन में सामाजिक और आर्थिक बदलाव लाए हैं, जिससे लोकतंत्र में लोगों की आस्था मजबूत हुई है।

उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि नए संसद भवन के निर्माण से राष्ट्र की समृद्धि और क्षमता को नई गति और शक्ति मिली है। बिरला ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि माननीय राष्ट्रपति के नेतृत्व में पूरा देश संविधान के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए एकजुट हुआ है। बिरला ने कहा कि लाखों भारतीयों द्वारा संविधान की प्रस्तावना का पठन करना और राष्ट्र को आगे ले जाने का संकल्प लेना इस पवित्र दस्तावेज के प्रति एक महान श्रद्धांजलि है। इस अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारत के संविधान की प्रस्तावना के वाचन में राष्ट्र का नेतृत्व किया।

बिरला ने 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रतिवर्ष 26 नवम्बर को ‘संविधान दिवस’ मनाने के ऐतिहासिक निर्णय का उल्लेख करते हुए कहा कि यह कदम वर्तमान पीढ़ी, विशेषकर युवाओं को संविधान में निहित मूल्यों, आदर्शों, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों से जोड़ने के लिए उठाया गया था।

भारत की वैश्विक भूमिका और प्रभाव के बारे में बिरला ने कहा कि संविधान भारत के लोगों को “वसुधैव कुटुम्बकम” के सिद्धांत का पालन करने के लिए प्रेरित करता है – दुनिया एक परिवार है। उन्होंने कहा कि संवैधानिक मूल्यों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता ने वैश्विक मंच पर भारत की छवि को प्रतिष्ठित किया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि सभी नागरिकों को संविधान के मूल्यों को बनाए रखने और भारत को एक विकसित और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने में योगदान देने का सामूहिक संकल्प लेना चाहिए।

भारत के संविधान को अंगीकृत करने के की 75वीं वर्षगांठ पर एक स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी किया गया। गणमान्य व्यक्तियों ने “भारत के संविधान का निर्माण: एक झलक” और “भारत के संविधान का निर्माण और इसकी शानदार यात्रा” शीर्षक वाली दो पुस्तकों का भी विमोचन किया। इन प्रकाशनों के अलावा, भारतीय संविधान की कला को समर्पित एक पुस्तिका भी जारी की गई। संस्कृत और मैथिली में भारत के संविधान के दो नए संस्करण भी जारी किए गए। इस अवसर पर उपस्थित विशिष्ट जनों को भारतीय संविधान की महिमा, इसके निर्माण और ऐतिहासिक यात्रा को समर्पित एक लघु फिल्म दिखाई गई।




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