मुख्यमंत्री की शाही बैठक
80 साल बाद राजवाड़ा में गूंजा सुशासन का स्वर:
अहिल्याबाई होल्कर की परंपरा को नमन
80 वर्षों के अंतराल के बाद, मध्य प्रदेश की सरकार ने इंदौर के हृदय—राजवाड़ा में अपनी कैबिनेट बैठक आयोजित कर इतिहास और वर्तमान का अद्भुत संगम रच दिया। यह अवसर केवल एक प्रशासनिक कार्यवाही नहीं थी, बल्कि एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक था, जहाँ शासन की नैतिकता, संस्कृति और जनसेवा के मूल्यों को फिर से केंद्र में लाया गया। यह आयोजन देवी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती को समर्पित था—एक ऐसी नायिका, जिनका शासन आज भी आदर्श माना जाता है।
राजवाड़ा की ऐतिहासिक बैठक
राजवाड़ा—होल्कर वंश की ऐतिहासिक राजधानी, जहां परंपराएं और गौरव आज भी जीवित हैं— यह बैठक केवल प्रतीकात्मक नहीं थी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मंत्रिमंडल ने यहां राज्य की नीतियों पर विमर्श किया और देवी अहिल्याबाई के सिद्धांतों को नमन करते हुए शासन के नैतिक दायित्वों की पुनः पुष्टि की।
राजवाड़ा को बैठक के लिए इस प्रकार सजाया गया था कि उसका ऐतिहासिक स्वरूप झलके और वह अहिल्याबाई के युग का जीवंत स्मरण बन सके।
मुख्यमंत्री ने अहिल्याबाई को “आदर्श शासक और आदर्श बहू” कहते हुए कहा कि उन्होंने कठिन काल में भी शासन को सेवा का माध्यम बनाया। उन्होंने “खासगी कोष” की स्थापना की, जिससे दान, धर्म और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिला।
अहिल्याबाई होल्कर का शासन: न्याय और जनकल्याण की मिसाल
अहिल्याबाई होल्कर का शासनकाल (1767–1795) भारतीय इतिहास का वह स्वर्णिम अध्याय है, जहां नारी नेतृत्व, न्याय, समरसता और संस्कृति का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है। उन्होंने न केवल मालवा क्षेत्र में सुशासन स्थापित किया, बल्कि सम्पूर्ण भारत में मंदिरों और धर्मशालाओं का निर्माण कर आध्यात्मिक चेतना को भी पुनर्जीवित किया।
1. न्यायप्रियता का उदाहरण:
अहिल्याबाई प्रजा के हर वर्ग से संवाद करती थीं। उन्होंने एक ‘दरबार-ए-आम’ की व्यवस्था बनाई थी, जहां कोई भी व्यक्ति खुलकर अपनी बात रख सकता था। न्याय में पक्षपात की कोई गुंजाइश नहीं थी।
एक प्रसिद्ध किस्सा है कि एक ब्राह्मण की गाय को राजा के पुत्र ने मार दिया। जब यह बात अहिल्याबाई को बताई गई, तो उन्होंने अपने पुत्र को सज़ा दिलाई। इससे यह स्पष्ट हुआ कि उनके लिए न्याय धर्म और रिश्तों से ऊपर था।
2. महिला सशक्तिकरण:
अहिल्याबाई ने न केवल खुद शासन संभाला, बल्कि महिलाओं को संपत्ति, शिक्षा और सामाजिक सम्मान दिलाने के लिए प्रयास किए। खासगी कोष से विधवाओं, अनाथों और निर्धनों की सहायता की जाती थी।
3. धर्मनिरपेक्षता और निर्माण कार्य:
उन्होंने केवल हिन्दू नहीं, बल्कि जैन और मुस्लिम समुदायों के लिए भी धर्मस्थलों का निर्माण कराया। वाराणसी का विश्वनाथ मंदिर, गंगा घाट, अयोध्या, रामेश्वरम, द्वारका, कांची और पुरी जैसे पवित्र स्थलों पर उनके निर्माण कार्य आज भी उनकी श्रद्धा और दूरदर्शिता का प्रमाण हैं।
राजवाड़ा में आयोजित यह बैठक न केवल अहिल्याबाई को श्रद्धांजलि थी, बल्कि वर्तमान शासन के लिए एक स्मरण था कि सुशासन केवल योजनाओं से नहीं, मूल्यों से चलता है।
अहिल्याबाई ने शासन को सेवा का माध्यम बनाया—न्याय, करुणा और कर्तव्य से परिपूर्ण। आज जब सरकारें जनहित में काम कर रही हैं, तो ऐसे ऐतिहासिक उदाहरण प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं।