Search
Sunday 3 August 2025
  • :
  • :
Latest Update

मप्र में लव जिहाद पर कानून सख्त पर कमजोर पड़ी पुलिस

मप्र में लव जिहाद पर कानून सख्त पर कमजोर पड़ी पुलिस ”
कमजोर पुलिसिंग ने घटाया रुतबा
भोपाल।
राजधानी के एक निजी कॉलेज की हिंदू छात्राओं को मुस्लिम युवकों ने पहचान छुपाकर फंसाया,दैहिक शोषण और ब्लैकमेलिंग की घटनाएं सामने आईं। ये अकेले अपराध नहीं, बल्कि योजनाबद्ध गैंग का काम था। बावजूद इसके पुलिस को भनक तक नहीं लगी। इसी तरह के कुछ अन्य मामले रायसेन,इंदौर व उज्जैन में भी बीते एक सप्ताह के दौरान सामने आए। इनमें धार्मिक स्वातंत्र्य कानून के तहत कार्यवाही भी की जा रही है।

“बुरका पहनो, मांस खाओ” — धर्मांतरण का दबाव भी
भोपाल में जो प्रकरण उजागर हुआ उसमें आरोपितों ने पीड़िताओं को मांस खाने के लिए मजबूर किया। बुरका पहनने को कहा। सबूतों के अनुसार,उनका इरादा सिर्फ दुष्कर्म नहीं बल्कि धर्म परिवर्तन भी था। यही वजह है कि मामला ‘लव जिहाद’ की श्रेणी में आया।

200 से ज्यादा केस, फिर भी बेखौफ अपराधी
लव जिहाद के खिलाफ धार्मिक स्वातंत्र्य कानून 2021 लाया गया था। इसके तहत मप्र में अब तक 200 से अधिक केस दर्ज हो चुके हैं। पूर्व व मौजूदा मुख्यमंत्री इसमें फांसी तक की सजा का प्रावधान लाने की बात कह चुके हैं,पर जमीनी हकीकत में कोई खास बदलाव नहीं आया।

कानून का खौफ पैदा नहीं कर सकी पुलिस
धार्मिक स्वातंत्र्य कानून नया नहीं है,लेकिन साल 2021 में इसे संशोधित स्वरूप में लाने के पीछे सरकार की मंशा इस तरह के मामलों पर रोक लगाने की रही। संबंधित कानून की धाराओं में बदलाव कर सजा को और सख्त किया गया,लेकिन पुलिस इस कानून का खौफ पैदा करने में विफल रही।
कमजोर पुलिसिंग रही बड़ी वजह
यहां तक कि पर्दे के पीछे संगठित अपराध पनपे लेकिन पुलिस इन सबसे बेखबर दिखी। अपराधियों संग गलबहियां,आम पीड़ित की शिकायत को नजर अंदाज करना व बढ़ते भ्रष्टाचार को कमजोर पुलिसिंग की बड़ी वजह माना जाता है। इस पर विभाग में शीर्ष पर बैठे ईमानदार अधिकारी भी सुधार लाने में असफल साबित हो रहे हैं।

पुलिस के लिए अब तक का सबसे मुश्किल साल
साल 2025 की पिछली तिमाही को ही मप्र पुलिस के लिए अब तक का सबसे मुश्किल वक्त कहा जा सकता है। सिर्फ मार्च-अप्रैल में ही आठ से ज्यादा बार पुलिसकर्मियों पर हमले हुए। कहीं पथराव,कहीं गोली तो कहीं वर्दी फाड़ी गई।अपराधियों में पुलिस का खौफ खत्म होता दिखा। बानगी जानें—

15 मार्च: मऊगंज के शाहपुरा थाना क्षेत्र के गड़रा गांव में पुलिसकर्मियों पर हमला हुआ जिसमें एक एएसआइ की मौत हो गई।

इसी दिन इंदौर में वकीलों से विवाद हुआ। जिसमें वकीलों ने टीआइ जितेंद्र सिंह यादव को दौड़ाया,वर्दी फाड़ी।

20 मार्च को दमोह में हिस्ट्रीशीटर कासिम कुरैशी को लेकर तफ्तीश करने पहुंचे पुलिसकर्मियों पर फायरिंग हुई।

21 मार्च को शहडोल के बुढ़ार में गोलीकांड के आरोपितों की तलाश में पहुंची पुलिस पर पथराव हुआ।

23 मार्च – सीहोर जिले के इछावर थाना क्षेत्र के खेरी गांव में तोड़फोड़ की सूचना पर पहुंची पुलिस टीम पर कुछ लोगों ने हमला कर दिया।

27 मार्च – सागर जिले के सुरखी में अपराधियों को पकड़ने गई पुलिस पर महिलाओं और अपराधियों ने हमला बोल दिया, जिसमें कई पुलिसकर्मी घायल हुए।

27 अप्रैल – भोपाल के रानी कमलापति स्टेशन पर शराब के नशे में युवकों ने पुलिसकर्मी की पिटाई की।

28 अप्रैल – सतना जिले के जैतवारा थाने में एक युवक ने प्रधान आरक्षक प्रिंस गर्ग को गोली मार दी।

पूर्व डीजीपी की राय — जागरूकता भी जरूरी
एक सेवानिवृत्त डीजीपी के मुताबिक,धार्मिक स्वतंत्रता कानून नया नहीं है। बस संशोधन हुए हैं। उनका कहना है कि पुलिस अपना काम कर रही है, लेकिन समाज और खासकर युवतियों को भी सतर्क रहने की जरूरत है।




Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *