मध्य प्रदेश कांग्रेस के कद्दावर नेता एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री विधायक जीतू पटवारी के ग्रह आजकल गर्दिश में है।
एक समय में दिल्ली दरबार तक दखल देने वाले पटवारी को वर्तमान समय में अपने ग्रह नगर में नगर निगम के नेता प्रतिपक्ष से मुंह की खानी पड़ रही है। पटवारी लाख कोशिश के बाद भी कॉंग्रेस शहर अध्यक्ष की नियुक्ति करवाने में असमर्थ साबित हो रहे हैं।
दरअसल विधायक जीतू पटवारी अपने करीबी अरविंद बागरी को शहर कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा ना चाह रहे थे,लेकिन अपने ही चेले नगर निगम नेता प्रतिपक्ष चिंटू चौकसे के विरोध के कारण मुंह की खानी पड़ी। चिंटू चौकसे अपने पट्ठे एक नंबर वार्ड से पार्षद चुनाव में हारल्ले गोलू अग्निहोत्री को शहर अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा ना चाह रहे हैं, इसी के चलते अभी तक शहर अध्यक्ष की कुर्सी खाली पड़ी है । एक तरफ जीतू पटवारी अरविंद बागड़ी को कॉंग्रेस शहर अध्यक्ष बनाना चाह रहे हैं। जिसके विरोध में चिंटू चौकसे कुछ कांग्रेसी पार्षदों के साथ कमलनाथ से मिलने भोपाल जा पहुंचे और चिंटू के विरोध के बाद कांग्रेस शहर अध्यक्ष की नियुक्ति अधर में लटक गई और पटवारी को मुंह की खानी पड़ी।
कुल मिलाकर देखा जाए तो पिछले कुछ समय से जीतू पटवारी के सितारे गर्दिश में चल रहे हैं।अगर विधानसभा का घटनाक्रम भी देखें तो जिस हिसाब से जीतू पटवारी को विधानसभा से निलंबित किया गया। लेकिन उनके समर्थन में जो कांग्रेस की भीड़ इकट्ठा होनी थी वह नहीं हुई ,पटवारी की जगह कोई और नेता होता तो चुनावी साल है कॉन्ग्रेस पूरे प्रदेश में सड़क पर उतर आती, पटवारी को गलतफहमी थी कि विधानसभा निलंबन के घटनाक्रम के बाद पूरे प्रदेश में उनके समर्थक कॉंग्रेस के कार्यकर्ता सड़क पर उतर जाएंगे लेकिन हुआ उससे विपरीत,पटवारी भोपाल में जिस दिन धरने पर बैठे थे उस दिन भी इंदौर के उनके समर्थक ही शामिल नहीं हुए। वहीं अगर देखा जाए तो महू में आदिवासी युवक की हत्या के बाद सारे कोंग्रेसी नेता पीड़ित मृतक के घर बैठने गए लेकिन जीतू पटवारी नजर नही आए। राऊ विधानसभा से लगी महू विधानसभा में इतनी बड़ी घटना हो गयी चुनावी साल है ऐसे में पटवारी का नदारद रहना कांग्रेस के अंदरूनी कलह को बयां करता है। क्योंकि इस पूरे घटनाक्रम को पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ लीड कर रहे थे और यह जगजाहिर है की कॉंग्रेस में कमलनाथ और जीतू पटवारी की ठनी हुई है। चुनावी साल है और पटवारी की अपनी ही पार्टी में जो स्थिति है वह आने वाले समय के लिए चिंताजनक है ।एक समय में भोपाल से लेकर दिल्ली तक राजनीति के क्षेत्र में दखल रखने वाले राहुल गांधी के करीबी जीतू पटवारी आखिर क्यों अलग-थलग नजर आ रहे हैं, शायद इसका कारण है कि राहुल गांधी की नजदीकी कमलनाथ को रास नहीं आ रही,और होता वही है जो कमलनाथ चाहते हैं क्योकि कमलनाथ राजनीति के वह मंजे हुए खिलाड़ी हैं जो अपने सामने सिंधिया की भी चलने नही दी तो पटवारी कहा लगते है।
कही दूसरे सिंधिया न बन जाएं जीतू पटवारी
मध्य प्रदेश में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। सत्तारूढ़ (भाजपा) और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां सत्ता में वापसी की तैयारियों में जुटी हैं। इधर, चुनाव से पहले ही कांग्रेस में खींचतान शुरू हो गयी है। पिछले विधानसभा चुनाव में जीत के बावजूद भी बीजेपी के हांथो सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर है। हालत ऐसी है कि चुनाव से पहले ही पार्टी में एक और विकेट गिरने की आशंका जताई जा रही है राहुल गांधी के एक और करीबी युवा नेता के दिल मे विद्रोह की आग लगी हुई है यह किसी भी दिन विस्फोट बन सकती है।कयास तो यह भी लगाए जा रहे है कि बहुत जल्द पार्टी में एक दूसरे सिंधिया का उदय हो सकता है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी को बेदखल करने के बाद कांग्रेस १५ साल बाद सत्ता में वापस आने में कामयाब रही थी, लेकिन पार्टी नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षा और कामनाथ कि जिद के चलते कोंग्रेस धराशायी हो गयी। गद्दारी का ताज पहनकर मार्च २०२० में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थक विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए, और कमलनाथ का सिंहासन उखड़ गया, परिणामस्वरूप, बीजेपी सत्ता में वापस आ गई और शिवराज चौथी बार मुख्यमंत्री बन गए। सिंधिया की कांग्रेस से विदाई में पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी और कमलनाथ की अहम भूमिका थी।
कॉंग्रेस को फिर न डूबा दे पटवारी का विद्रोह
जीतू पटवारी का अंदरूनी तौर पर चल रहा विद्रोह कही पार्टी के लिए फिर गंभीर समस्या न बन जाए राजनीतिक गलियारे में चर्चाएं चल रही हैं कि जो काम २०२० में सिंधिया ने किया, वही २०२३ के चुनाव में पटवारी दोहरा न दे क्योकि कमलनाथ का रवैया जीतू पटवारी को रास नहीं आ रहा।
इस बार कांग्रेस सत्ता में वापस आ भी गई तो कमलनाथ के नेतृत्व को चुनौती देने वाले पूर्व मंत्री जीतू पटवारी सत्ता में वापसी होने पर भी कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकते हैं। पटवारी राऊ विधानसभा सीट से दो बार के विधायक हैं। पिछले कुछ वर्षों में वे एक प्रभावशाली नेता के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई हैं दिल्ली दरबार तक बढ़ती उनकी लोकप्रियता, से पार्टी के बड़े नेता चिंतित हैं।
कमलनाथ के करीबी संजय शुक्ला भी पटवारी को निपटाने में लगे
एक नंबर के विधायक संजय शुक्ला कमलनाथ के बेहद करीब हैं यह बात नगर निगम चुनाव में साबित भी हो गई है जीतू पटवारी के बाद शहर में कांग्रेस का अगर कोई बड़ा चेहरा है तो संजय शुक्ला वह आर्थिक स्थिति में भी पटवारी को टक्कर देते है। संजय शुक्ला नहीं चाहते की जीतू पटवारी का कद उनसे ज्यादा बड़े समय-समय पर पटवारी का कद छोटा करने मैं पीछे नहीं हटते।पटवारी प्रदेश में कांग्रेस के सबसे सक्रिय नेताओं में से एक हैं। वे किसी भी मौके पर आम लोगों के बीच पहुंचने से नहीं चूकते। विधानसभा में भी वे सरकार के खिलाफ हमला करने में सबसे आगे रहते हैं। उनके आक्रामक रवैये के चलते ही विधानसभा के बजट सत्र के दौरान स्पीकर ने उन्हें सदन से निलंबित कर दिया था। उनके समर्थक पूरे प्रदेश में मौजूद हैं। पटवारी के समर्थक चाहते थे कि उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाए। इसके लिए समर्थकों ने केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाया था, लेकिन कमलनाथ के विरोध के चलते यह संभव नहीं हो पाया। अगर विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी होती है तो पटवारी के समर्थक उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर सकते हैं। क्योकि पिछली सरकार में कमलनाथ अपनी सरकार बचाने में फेल साबित हुए थे। कार्यकर्ता अपने आप को ठगा महसूस कर रहे थे। यदि इस बार अंदरूनी टकराव की हालत बनी तो पटवारी भी सिंधिया का रास्ता अपना सकते हैं।
कमलनाथ दूरदर्शी नेता है उनको आने वाले समय का आभास है यही कारण रहा है कि पटवारी को विधानसभा से निलंबित होने के बाद भी कांग्रेस नेतृत्व ने उनका साथ नहीं दिया। अगर किसी और को इस तरह के निलंबन का सामना करना पड़ता, तो पूरी कांग्रेस स्पीकर के फैसले के विरोध में सड़क पर उतर आती। लेकिन एक रणनीति के तहत पटवारी को अकेले छोड़ दिया गया।
एक नंबर के विधायक संजय शुक्ला कमलनाथ के बेहद करीब हैं यह बात नगर निगम चुनाव में साबित भी हो गई है जीतू पटवारी के बाद शहर में कांग्रेस का अगर कोई बड़ा चेहरा है तो संजय शुक्ला वह आर्थिक स्थिति में भी पटवारी को टक्कर देते है। संजय शुक्ला नहीं चाहते की जीतू पटवारी का कद उनसे ज्यादा बड़े समय-समय पर पटवारी का कद छोटा करने मैं पीछे नहीं हटते।पटवारी प्रदेश में कांग्रेस के सबसे सक्रिय नेताओं में से एक हैं। वे किसी भी मौके पर आम लोगों के बीच पहुंचने से नहीं चूकते। विधानसभा में भी वे सरकार के खिलाफ हमला करने में सबसे आगे रहते हैं। उनके आक्रामक रवैये के चलते ही विधानसभा के बजट सत्र के दौरान स्पीकर ने उन्हें सदन से निलंबित कर दिया था। उनके समर्थक पूरे प्रदेश में मौजूद हैं। पटवारी के समर्थक चाहते थे कि उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाए। इसके लिए समर्थकों ने केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाया था, लेकिन कमलनाथ के विरोध के चलते यह संभव नहीं हो पाया। अगर विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी होती है तो पटवारी के समर्थक उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर सकते हैं। क्योकि पिछली सरकार में कमलनाथ अपनी सरकार बचाने में फेल साबित हुए थे। कार्यकर्ता अपने आप को ठगा महसूस कर रहे थे। यदि इस बार अंदरूनी टकराव की हालत बनी तो पटवारी भी सिंधिया का रास्ता अपना सकते हैं।
कमलनाथ दूरदर्शी नेता है उनको आने वाले समय का आभास है यही कारण रहा है कि पटवारी को विधानसभा से निलंबित होने के बाद भी कांग्रेस नेतृत्व ने उनका साथ नहीं दिया। अगर किसी और को इस तरह के निलंबन का सामना करना पड़ता, तो पूरी कांग्रेस स्पीकर के फैसले के विरोध में सड़क पर उतर आती। लेकिन एक रणनीति के तहत पटवारी को अकेले छोड़ दिया गया।