हिंगलाजगढ़ का स्वर्णिम इतिहास
किले का इतिहास गुप्तकाल तक जाता है। परमार राजवंश द्वारा बारहवीं सदी में इस किले को इसका वर्तमान स्वरूप दिया गया। परन्तु आगे चल कर मुस्लिम आक्रमणों के दौरान यह किला ध्वस्त हो गया। आगे, इस पर हाड़ाओं का नियंत्रण हुआ और फिर यहां रामपुर के चंद्रावतों का भी राज रहा। मालवा की रानी अहिल्या बाई द्वारा चंद्रावतों को युद्ध में पराजित कर यहां मराठों का नियंत्रण स्थापित किया गया। अहिल्या देवी द्वारा किले को पुनः मजबूती दी गई। उन्होंने किले के हिंगलाज माता के मंदिर सहित राम मंदिर और हनुमान मंदिर आदि का भी पुनर्निर्माण करवाया गया। उनके पश्चात यशवन्त राव होलकर द्वारा भी इसकी मरम्मत आदि करवाई गई।
आज किले की प्राचीर को छोड़ कर शेष किला खंडहर स्वरूप में ही है। किला एक पहाड़ी की चोटी पर है, जिसके आगे गहरी वादी है। इस वादी में आज भी घना जंगल है और मनुष्य की बस्ती के कोई चिन्ह नजर नहीं आते। आज हिंगलाज माता सहित जो मंदिर बने हुए हैं, वे निश्चित ही कुछ ही वर्षों पूर्व निर्मित हुए हैं। पूरे गढ़ पर ध्वस्त किए गए मंदिरों के अवशेष बिखरे पड़े हैं। इन मन्दिरों से निकले पत्थरों का इस्तेमाल पुरातत्व विभाग द्वारा प्राचीर के पुनर्निर्माण में किया गया है और इसीलिए प्राचीर में कईं स्थानों पर बेतरतीबी से ये पत्थर चुने हुए नजर आते हैं।
इस सन्दर्भ में दो बातों का ज़िक्र महत्वपूर्ण है।
पहली, हिंगलाज माता का मंदिर आस पास के क्षेत्र के ग्रामीणों के लिए निश्चित ही श्रद्धा का केन्द्र है। गढ़ के ऊपर खाना बनाने के लिए स्थान नियोजित किए गए हैं। वहां काफी मात्रा में बड़े बर्तन आदि भी उपलब्ध है। ग्रामीण मुख्यतः पैदल या ट्रैक्टर आदि में बैठ कर आते हैं। भोजन बनाने की सामग्री अपने साथ ले कर आते हैं। गढ़ पर माता हिंगलाज की छत्र छाया में भोजन प्रसादी बनती है। भजन पूजन होता है।
इस देश के कुछ शीर्ष नेता यदि यहां पहुंचेंगे तो सम्भवतः बड़े निराश होंगे। क्योंकि मन्दिर में किसी की जाति की कोई चर्चा ही नहीं है। समाज के हर तबके से पुरुष, महिला, बच्चे मुक्त भाव से मन्दिर के गर्भ गृह में प्रवेश कर स्वयं अपने हाथों से मां हिंगलाज की पूजा करते देखे जा सकते हैं। किसी भी जाति का ग्रामीण किसी अत्याचारी ब्राह्मण द्वारा लूटा नहीं जा रहा!
दूसरी बात थोड़ी दुखद है। गढ़ के ऊपर मन्दिर के चारों ओर प्रचण्ड गन्दगी फैली हुई है। पानी की बोतलें, पान मसाले के पाउच, प्लास्टिक की थैलियां, चिप्स आदि के रैपर इत्यादि चारों ओर बिखरे पड़े हैं। प्राचीर के नीचे जहां भी झांके ये ही दृश्य नजर आता है। कहीं कोई कचरा एकत्रीकरण और निस्तारण का प्रयास नज़र नहीं आता। क्षेत्र में प्रवेश के समय वन विभाग प्रति वाहन तय शुल्क लेता है। कार आदि के लिए यह शुल्क ₹150/- है। ट्रैक्टर के लिए ₹300/-. दिन भर में सौ के लगभग वाहन आना सामान्य है। परन्तु उस धन से सफाई की कोई व्यवस्था नहीं की जा रही है।
दुर्भाग्य से हमारे देश में यह समस्या अधिकांश स्थानों पर इतनी ही विकराल है। पुरातत्व विभाग जितने क्षेत्र का संधारण करता है, उतना क्षेत्र सामान्यतः साफ स्वच्छ रहता है। परन्तु शेष सभी स्थान गन्दगी से पटे पड़े रहते हैं। हम कब सीखेंगे? प्रशासन और जनता दोनों ही समान रूप से इस शर्मनाक परिस्थिति के लिए उत्तरदाई हैं। पूरे हिंगलाज गढ़ पर एक भी डस्टबिन नजर नहीं आई। भारत में पर्यटन की अनन्त संभावनाएं हैं। हमारे यहां अकूत प्राकृतिक सम्पदा है तो हजार वर्ष प्राचीन मनुष्य निर्मित अविश्वसनीय वास्तु निर्माण है। अनोखे वन्य प्राणी है तो अत्यन्त आकर्षक और परिपक्व सांस्कृतिक कलाएं हैं। इन विशेषताओं के बल पर पर्यटन हमारे लिए एक ऐसा उद्योग बन सकता है, जहां से बड़ी संख्या में विदेशी मुद्रा प्राप्त हो सकती है। परन्तु स्वच्छता के बगैर यह असम्भव है।
अभी कुछ ही दिन पहले @बाजीराव बलाल द्वारा रवाण्डा नामक छोटे से अफ्रीकी देश का एक वीडियो FB पर साझा किया गया था। एक सामान्य व्यक्ति के मनोमस्तिष्क में रवाण्डा का नाम आज तक सिर्फ एक ही घटना से जुड़ा हुआ है, 1991 का नर संहार! परन्तु वह वीडियो देख समझ आया कि रवाण्डा इस घटना को पीछे छोड़ चुका है। पूरे वीडियो में कहीं गंदगी का कोई चिन्ह भी नजर नहीं आया। यदि रवाण्डा जैसा देश यह कर सकता है तो हम क्यों नहीं कर पा रहे?
गत आठ वर्षों से हमारा इन्दौर देश में सबसे स्वच्छ नगर का स्थान अर्जित कर रहा है। प्रशासन, राज्य सरकार, हम जैसे नगर के बाशिंदे सब इस पर गर्व करते हैं। परन्तु, एक दृष्टि से, क्या यह शर्मनाक नहीं है कि एक नगर की स्वच्छता का हम डंका पीटते हैं? यह ऐसा नहीं हुआ कि कोई व्यक्ति इस बात का डंका पीटे कि वह रोज स्नान करता है? क्या सबसे स्वच्छ शहर की घोषणा का अनकहा दूसरा पहलू यह नहीं है कि शेष शहर अब भी गन्दे हैं? हम सभी नागरिकों को इस सम्बंध में गम्भीर विचार करने की आवश्यकता है। स्वयं से, स्वयं के परिवार से, स्वयं के मित्रों से हमारे आचरण को अनुशासित करना होगा। जहां भी संभव हो, अन्य लोगों को भी जागरूक बनाना होगा।
जो थोड़ी बहुत सार्वजनिक स्वच्छ नजर आने लगी है उस पर गर्व करने के स्थान पर शेष देश स्वच्छ न रहने पर शर्म की भावना की आवश्यकता है। यदि विश्व में सबसे गन्दे देशों की सूची बनाई जाए, तो हमसे नीचे शायद इक्का दुक्का ही देश मिलेंगे। हम विश्व शक्ति और विश्व गुरु बनने की आकांक्षा रखते हैं। गन्दगी इस दिशा में हमारे प्रयासों को बौना बना देती है। उसका निपटारण हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।
श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर
22/07/2025