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Thursday 24 April 2025
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फसलों में कीटनाशक दवा का मनुष्यों पर प्रभाव

 

भारत में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए कीटनाशक (पेस्टिसाइड) का व्यापक उपयोग किया जाता है। हालांकि, ये रसायन फसलों को कीटों और बीमारियों से बचाते हैं, लेकिन इनके अत्यधिक और अनियंत्रित उपयोग से पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य और जैव विविधता पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ते हैं।

1. कीटनाशकों का मानव शरीर पर प्रभाव

कीटनाशक मुख्य रूप से विषैले रसायन होते हैं, जो भोजन, पानी और वायु के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। इनका प्रभाव तत्काल (अल्पकालिक) या दीर्घकालिक हो सकता है।

(क) अल्पकालिक प्रभाव (Short-term Effects)

त्वचा संबंधी समस्याएँ – कीटनाशक के सीधे संपर्क में आने से खुजली, जलन और चकत्ते हो सकते हैं।

सांस की समस्या – इनके धुएँ या अवशेषों के संपर्क में आने से खांसी, सांस फूलना और अस्थमा जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।

मतली और उल्टी – कई बार दूषित भोजन या पानी के सेवन से पेट में दर्द, उल्टी और डायरिया हो सकता है।

स्नायविक प्रभाव – कुछ कीटनाशकों के संपर्क में आने से सिरदर्द, चक्कर आना और थकान जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।

(ख) दीर्घकालिक प्रभाव (Long-term Effects)

कैंसर का खतरा – शोधों में पाया गया है कि लंबे समय तक कीटनाशकों के संपर्क में रहने से कैंसर, विशेष रूप से लिवर, फेफड़े और त्वचा कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।

गर्भावस्था और नवजात शिशु पर प्रभाव – गर्भवती महिलाओं पर इनका विशेष प्रभाव पड़ता है, जिससे जन्मजात विकृतियाँ, समय से पहले प्रसव और मस्तिष्क विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

प्रजनन क्षमता पर प्रभाव – पुरुषों और महिलाओं में प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकता है, जिससे बांझपन की समस्या हो सकती है।

हॉर्मोन असंतुलन – कीटनाशकों के रसायन शरीर के अंतःस्रावी तंत्र (Endocrine System) को बाधित कर सकते हैं, जिससे हॉर्मोनल असंतुलन और अन्य बीमारियाँ हो सकती हैं।

मस्तिष्क और स्नायविक समस्याएँ – लंबे समय तक कीटनाशकों के संपर्क में रहने से पार्किंसन रोग, अल्जाइमर और अन्य स्नायविक विकार हो सकते हैं।

2. खाद्य पदार्थों में कीटनाशक अवशेष

कीटनाशकों का एक प्रमुख खतरा यह है कि ये खाद्य पदार्थों में अवशेष के रूप में रह जाते हैं। जब हम बिना अच्छी तरह से धोए फल, सब्जियाँ या अनाज का सेवन करते हैं, तो ये विषैले तत्व शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और धीरे-धीरे स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाते हैं।

3. पानी और पर्यावरण पर प्रभाव

जल प्रदूषण – खेतों में छिड़के गए कीटनाशक वर्षा के पानी के साथ नदियों और जलाशयों में मिल जाते हैं, जिससे पानी दूषित हो जाता है।

मिट्टी की गुणवत्ता पर असर – ये रसायन मिट्टी के पोषक तत्वों को नष्ट कर देते हैं, जिससे भूमि बंजर हो सकती है।

जीव-जंतुओं पर प्रभाव – पक्षियों, मधुमक्खियों और अन्य उपयोगी कीटों की संख्या घट रही है, जिससे जैव विविधता प्रभावित हो रही है।

4. समाधान और रोकथाम

(क) जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा

रासायनिक कीटनाशकों के बजाय जैविक कीटनाशक (Neem Oil, Cow Urine, Bio-pesticides) का उपयोग किया जाए।

मिश्रित खेती और फसल चक्र अपनाया जाए ताकि कीटों का प्रकोप कम हो।

(ख) कीटनाशकों का नियंत्रित उपयोग

कीटनाशकों का छिड़काव वैज्ञानिक विधियों से किया जाए और सरकार द्वारा तय मानकों का पालन हो।

किसानों को जैविक कृषि के प्रति जागरूक किया जाए।

(ग) फलों और सब्जियों को अच्छी तरह धोना

खाने से पहले सब्जियों और फलों को साफ पानी से अच्छी तरह धोना चाहिए या हल्के गर्म पानी में कुछ देर भिगोकर रखना चाहिए।

(घ) सरकार और नीतियों की भूमिका

सरकार को सख्त नियम बनाकर अत्यधिक जहरीले कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।

जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए किसानों को आर्थिक सहायता दी जाए।

5. निष्कर्ष

हालाँकि कीटनाशक कृषि उत्पादकता बढ़ाने में सहायक होते हैं, लेकिन इनका अनियंत्रित उपयोग मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। हमें जैविक खेती को अपनाने, सुरक्षित कृषि पद्धतियों का पालन करने और जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है ताकि हम अपनी सेहत और आने वाली पीढ़ियों को इन खतरनाक प्रभावों से बचा सकें।




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