भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का रहस्य
27 जून को जगन्नाथ प्रभु की रथयात्रा की शुरुआत हो रही है।पुरी की रथयात्रा विश्व प्रसिद्ध है, लेकिन उससे भी अधिक रोचक और रहस्यमयी है भगवान जगन्नाथ का गुंडिचा मंदिर की यात्रा, जिसे “मौसी घर जाना” कहा जाता है। यह धार्मिक परंपरा केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि गहराई से जुड़ी पौराणिक मान्यताओं, रहस्यों और आध्यात्मिक संकेतों से परिपूर्ण है।
गुंडिचा मंदिर क्या है?
गुंडिचा मंदिर, पुरी स्थित मुख्य श्रीजगन्नाथ मंदिर से लगभग 2.5–3 किलोमीटर दूर है। यह वही स्थान है जहाँ रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने रथों पर सवार होकर हर वर्ष कुछ दिनों के लिए जाते हैं।
इस मंदिर को गुंडिचा मंदिर इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका निर्माण राजा इन्द्रद्युम्न की रानी गुंडिचा देवी ने करवाया था, जो भगवान जगन्नाथ की परम भक्त थीं। जनमान्यता में यह मंदिर भगवान की मौसी का घर माना जाता है।
भगवान जगन्नाथ क्यों जाते हैं मौसी के घर?
1. भक्तिपूर्ण भावनाओं की अभिव्यक्ति
जैसे कोई बेटा अपनी माँ या मौसी के घर प्रेमवश जाता है, वैसे ही भगवान भी मानव-सुलभ भावना का प्रदर्शन करते हैं। यह यात्रा दिखाती है कि ईश्वर भी पारिवारिक रिश्तों में बंधे हैं, और भक्तों से आत्मीयता का भाव रखते हैं।
2. गुंडिचा देवी की भक्ति का फल
रानी गुंडिचा ने तपस्या और सेवा से भगवान को प्रसन्न किया था। भगवान ने उन्हें वचन दिया था कि वे हर वर्ष उनके घर दर्शन देने अवश्य आएँगे। अतः गुंडिचा मंदिर यात्रा उस वचन का निर्वाह है।
3. आध्यात्मिक प्रतीक
पौराणिक रूप से, गुंडिचा मंदिर वैकुण्ठ (भगवान विष्णु का निवास) का प्रतीक है, जबकि श्रीमंदिर संसार का। भगवान का गुंडिचा जाना आत्मा की माया से मुक्त होकर परमात्मा की ओर यात्रा का प्रतीक माना जाता है।
रथयात्रा और विश्राम
रथयात्रा के दौरान भगवान लगभग 7 दिन तक गुंडिचा मंदिर में ठहरते हैं।
वहाँ विशेष पूजा होती है, भक्तगण दर्शन करते हैं, और भगवान को ‘पोड़ा पिठा’ (ओडिशा का पारंपरिक व्यंजन) चढ़ाया जाता है, जो मौसी के घर का विशेष पकवान माना जाता है।
वापसी यात्रा – बहुदा यात्रा
एक सप्ताह बाद भगवान बहुदा यात्रा के दौरान पुनः श्रीमंदिर लौटते हैं।
इस दौरान एक विशेष पड़ाव ‘माँ लक्ष्मी का नाराज होना’ भी होता है, जिसे हेरा पंचमी कहते हैं। इसमें लक्ष्मीजी नाराज होकर पूछती हैं कि वे बिना बताए कहाँ चले गए थे!
गुंडिचा मंदिर की यात्रा केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि ईश्वर और भक्त के बीच के स्नेहपूर्ण संबंध का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि भगवान न केवल पूजनीय हैं, बल्कि संबंधों में बंधे, संवेदनशील और सजीव सत्ता हैं। रथयात्रा और गुंडिचा मंदिर का यह रहस्य हमें यह सिखाता है कि ईश्वर अपने भक्तों के प्रेम के वश में रहते हैं – और यही सच्ची भक्ति की पराकाष्ठा है।