राष्ट्र की बात
शीतल रॉय, चीफ एडिटर
कोदंड गर्जना
भारत के लिए बांग्लादेश में हिंदुओं की त्रासदी एक रिमांइडर है। यह जो वहाँ हो रहा है, यह यहाँ भी हो सकता है। ये भारत के आने वाले समय के लिए प्रकृति का संकेत है। कुछ कांग्रेसी नेता जिनमें सलमान ख़ुर्शीद , सज्जन वर्मा वह इससे चिंतित नहीं हैं, बल्कि आशान्वित हैं। उनके लिए यह घटना सत्ता-परिवर्तन मात्र है। क्योंकि अपने पड़ोसी देश में घट रही इतने महत्व की आपदा में उन्हें सिर्फ़ अवसर नज़र आ रहा है।
इतनी सीमित, इतनी स्वार्थ केंद्रित दृष्टि के साथ यह नेता भारत के जन प्रतिनिधि तो बन जाते हैं। यदि भीड़ के आधार पर ही किसी देश की सत्ता का निर्णय होना हैं तो यह नेता कैसे भूल जाते हैं कि यह भीड़ इनके घर भी घुस सकती है। इनके भी परिजनों के अंत:वस्त्र ऐसे ही दिखाये जा सकते हैं। जैसे एक प्रधानमंत्री के उछाले गए, सारी अभद्रताएँ जो वहाँ उस भीड़ ने कीं और जिसे छात्र-क्रांति कहा गया-यह घटना न केवल यह बताती है कि वहाँ के स्टूडेंट्स की पढ़ाई का स्तर क्या है बल्कि यह भी संदेश है जो उसे छात्र क्रांति बताने वालों की नज़र में उनके शिक्षा के लक्ष्य और उपलब्धियाँ क्या हैं। वहाँ स्त्रियों के साथ हुए बलात्कार भी इसी मानसिकता का और नृशंस विस्तार हैं। जो वहाँ की प्रधानमंत्री के अंत:वस्त्र दिखाते अपने आप पर गर्व महसूस करते हैं वे वही लोग हैं जो मौक़ा पड़ते ही स्त्रियों के साथ बलात्कार करते हैं।जिसका उदाहरण कलकत्ता में डॉक्टर की घटना है,
मैं तो ख़ुद बाँग्ला हूँ। मेरे पास तो स्वयं बाँग्लादेश से पिछले इतने दशकों से वहाँ हिन्दुओं के साथ किये जा रहे हिंसाचार के समाचार बल्कि कहानियाँ छन छनके आते रही हैं। हिन्दू राष्ट्र की कल्पना करने वाले हिन्दुओं का कोई देश नहीं है। हिंदुस्तान नाम में हिन्दू होने के बाद भी भारत भी हिन्दू राष्ट्र नहीं है। वह स्वयं को सेकुलर कहता है। नेपाल भी कम्युनिस्ट क्रांति के बाद हिन्दू नहीं रहा। जबकि विश्व के 57 देश मुस्लिम हैं। उन्होंने बाक़ायदा स्वयं को इस्लामिक देश घोषित कर रखा है। उनकी पृथक् पृथक् आवाज़ों का विश्व पटल पर अपना दबाव है। उन्होंने मिलकर इस्लामिक सहयोग संगठन बना रखा है जिसके पास इतना पैसा है कि वह अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की दिशा वही तय करता है। इसलिए तो बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे जुल्म की कहानियाँ बाहर नहीं आ रहीं। हाल के घटनाक्रम पर जो यहाँ वहाँ विरोध प्रदर्शन हुए हैं, वे नक्कारखाने में तूती की आवाज़ बनकर रह गये हैं।
बांग्लादेश इस बात को फिर सिद्ध करता है कि भारत के कश्मीर में जो हिंदुओं को मार मार कर भगाया गया उस पर कभी कोई चर्चा क्यों नहीं हुई? एक कूपमंडूक और अपने व्यक्तिगत हितों की पूर्ति में व्यस्त हिन्दू को इन सब सभ्यतागत चुनौतियों से कोई मतलब नहीं। मौत आहिस्ता आहिस्ता उसकी तरफ़ बढ़ भी रही हो तब भी नही….