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Tuesday 5 August 2025
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31 अक्टूबर 2024 कार्तिक माह कृष्ण पक्ष प्रदोष व्यापिनी निशारात्रि अमावस्या गुरुवार मे दुर्लभ संयोग चंद्रमा- तुला राशि नक्षत्र -चित्रा चर योग सिध्दि योग मे दीपोत्सव का पर्व मनाया जायेगा

गुरुवार को पड़ने वाली अमावस्या पुण्यदायी शुभ फल देती है।* इस तिथि पर पितरों के निमित्त शिव मंदिर या पिपल मे दिप लगाते है। स्नान-दान के बाद दिनभर व्रत रखकर शनिदेव के साथ वट और पीपल के पेड़ की पूजा करने से ग्रह दोष खत्म होते हैं

सनातन धर्म में तिथियों और व्रत-त्योहारों की गणना वैदिक पंचांग के आधार पर की जाती है। परंपरागत रूप से, दीपावली का पर्व कार्तिक माह की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। लेकिन इस साल अमावस्या तिथि का विस्तार 31 अक्तूबर और 01 नवंबर दोनों दिन तक हो रहा है, जिससे लोगों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

पंचांग के अनुसार, दीपावली उस दिन मनाई जाएगी जब अमावस्या तिथि की प्रधानता रात्रि में अधिक होगी, जो रोशनी के पर्व का प्रतीक है। वैदिक पंचांग शास्त्र के अनुसार
ज्योतिष और मुहूर्त शास्त्र के अनुसार देखा जाए तो, पारंपरिक मान्यता के अनुसार लक्ष्मी पूजन के लिए प्रदोष काल और निशीथ काल का विशेष महत्व है।

लक्ष्मी पूजन और दीपावली का पर्व मनाना अत्यंत शुभ माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां लक्ष्मी का प्रादुर्भाव प्रदोष काल में हुआ था, इसलिए निशीथ काल में लक्ष्मी पूजन और साधनाएं विशेष महत्व रखती हैं।

इस समय दैवीय और आसुरी दोनो शक्तियां सजीव होती है और फल देती हैं
इसलिए, तिथि का चयन इस बात पर निर्भर करता है कि पूजा के समय अमावस्या तिथि निशिताकाल 31 अक्तूबर को करना चाहिए किसी भी प्रकार भ्रम की स्थिति उत्पन्न न होना चाहिए

ज्योतिर्विद पं अजय व्यास की अंतिम सलाह से इस स्थिति को स्पष्ट कर गया है।
दीपावली के दिन प्रदोष काल मे लक्ष्मी-गणेश जी कुबेर की पुजा करना शुभ. माना जाता है*
गणेश जी को विघ्नों का नास करने वाला माना जाता हैं

ज्योतिष शास्त्र मे उल्लेखनीय दीवाली की रात को महानिशा की रात कहा जाता है,

रात्रि काल में जिसे निशीथ काल या तुरीय संध्या कहते हैं, यह समय काल तंत्रादि सिद्धियों के लिए सर्वोत्तम होता है.

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चर लग्न -(‘मेष )
प्रदोष काल सायंकाल 05 से 06/39 तक
घर-परिवार ( ग्रहस्थ )
प्रदोष काल स्थिर लग्न-( वृषभ ) शाम 06 बजकर 45 मिनट लेकर 08 बजकर 40 मिनट तक रहेगा।
तंत्र मंत्र सिद्धि राज्य सुख संबंधित कार्य के लिए
लक्ष्मी पूजा का निशिता मुहूर्त-
स्थिर लग्न – सिह
31 अक्टूबर को रात 01 बजकर 15 मिनट से देर रात 03:05 बजे तक है।

भारत में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों ही दृष्टि से बहुत महत्त्व है।
भारत मे सबसे बड़े त्योहारों में से एक है, जो व्यापक रूप से बनाया जाने वाला पर्व है
असत्य पर सत्य की विजय का यह त्यौहार हम सबको अंधेरे से उजाले की ओर जाने की प्रेरणा देता है अंधेरे से उजाले की ओरजाने की प्रेरणा देता है । भारत के लोग अति उत्साह के साथ त्योहार बनाते है ।

एक ही त्यौहार को मनाने के पीछे पूरे भारत में अलग-अलग धारणाएँ और तौर-तरीके हैं, लेकिन हमें इस बात पर भी गौर करना चाहिये कि इतनी विविधताओं के बावजूद कुछ चीजें जैसे अपने घर को दीपों से फुलो रोसनी से सजाते है, अपने परिवार और दोस्तों को दिवाली कार्ड व उपहार देना, अपने प्रियजनों के साथ समय बिताना व उनके साथ में स्वादिष्ट भोजन का आनंद लेना और अपने अराध्य का स्मरण करके जीवन को बेहतर बनाने का संकल्प लेना इत्यादि सभी धर्मों व सभी स्थानों पर समान है यानी हम भिन्न होते हुए भी एक हैं।
अर्थात यह पर्व उपनिषदों में कहे गए ‘तमसो मा ज्योतिर्ग्मय’ का आह्वान करता है।

*दिवाली का त्योहार पांच दिनों तक चलता है, इसलिए इसे पांच दिवसीय दीपोत्सव कहा जाता है: पहला दिन: धनतेरस, दूसरा दिन: नरक चतुर्दशी यानी छोटी दिवाली, तीसरा दिन: बड़ी दिवाली, चौथा दिन: अन्नकूट या गोवर्धन पूजा, पांचवां दिन: भाई दूज.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दिवाली के दिन ही
यह त्योहार भगवान राम के 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लोटने का जश्न बनाता है,
भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा की मदद से नरकासुर का वध किया था

*
दिवाली को मनाने के लिए पर्यावरण-अनुकूल तरीकों का भी इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि मिट्टी के दीपक जलाना और पर्यावरण-अनुकूल आतिशबाजी का इस्तेमाल करना
दिवाली खुशी, समृद्धि, और आध्यात्मिक नवीनीकरण अंधकार पर प्रकाश और ज्ञान की जीत होती है.

दीवाली रोशनी का त्योहार है और इसे मनाने का तरीका और महत्व कई तरह से है:
दीये के प्रकाश से वातावरण शुद्ध होता है। वातावरण में फैले कीटाणुओं का नाश होता है।
यह जीवन के अंधकार से प्रकाश की ओर जाने की प्रेरणा देता है।

मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए ये मंत्र जाप पाठ कर सकते हैं:
श्री सुप्त

कुश आसन पर बैठकर मंत्र जप करने से अनंत गुना फल मिलता है
मां लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करने के लिए, कमल गट्टे की माला या स्फटिक की माला का इस्तेमाल किया जाता है:

 

ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मी नमः

ॐ श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नम:

लक्ष्मी नारायण नम:

धनाय नमो नम:

ॐ लक्ष्मी नम:

ॐ ह्रीं ह्रीं श्री लक्ष्मी वासुदेवाय नम:

पद्मानने पद्म पद्माक्ष्मी पद्म संभवे तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्

या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥’

दिवाली पर झाड़ू से जुड़ी कुछ और मान्यताएं:

दिवाली के दिन झाड़ू खरीदना बहुत शुभ माना जाता है.
दिवाली के दिन झाड़ू खरीदने से घर में सुख-शांति आती है और धन में बढ़ोतरी होती है.
दिवाली के दिन झाड़ू दान करने से धन में वृद्धि होती है और स्वास्थ्य में भी सुधार होता है.
दिवाली पर पुरानी झाड़ू को घर से हटाने से पहले घर में नई झाड़ू ले आनी चाहिए.

दिवाली पूजन में दक्षिणावर्ती शंख को पूजा स्थल पर रखना चाहिए:

शंख को पूजा स्थल पर रखते समय, इसका खुला भाग ऊपर की ओर होना चाहिए.

इसे हमेशा भगवान विष्णु, लक्ष्मी या बाल गोपाल की मूर्ति के दाहिनी ओर रखना चाहिए.

शंख को लाल कपड़े में लपेटकर रखना चाहिए.

शंख में गंगाजल भरकर रखना चाहिए.

शंख को होली, दिवाली जैसे शुभ मुहर्त में ही पूजा स्थल पर स्थापित करना चाहिए.

शंख को हमेशा भगवान विष्णु, लक्ष्मी पास ही रखें.

लक्ष्मी पूजन में कलश स्थापना के लिए, घर के ईशान कोण या पूर्व दिशा में स्थित कमरे का इस्तेमाल करना शुभ माना जाता है. कलश स्थापना के लिए, इन बातों का ध्यान रखें:

पूजा चौकी पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्तियां इस तरह रखें कि लक्ष्मी जी के दायीं ओर गणेश जी हों और उनका मुख पूर्व दिशा की ओर रहे.

कलश को लक्ष्मी जी के पास चावल पर रखें.
कलश पर एक नारियल लाल वस्त्र में लपेटकर रखें, ताकि केवल इसका अग्रभाग दिखाई दे.
कलश के मुंह पर पंच पल्लव यानी आम, पीपल, बरगद, गुलर और पाकर के पत्ते रखें.
कलश के मुख पर चावल भरा कटोरा रखें और उसके ऊपर लाल कपड़े में लिपटा कच्चा नारियल रखें. कलश के ऊपर रोली से “ऊँ” और ”स्वास्तिक” का शुभ चिन्ह बनाएं. कलश स्थापित करने के बाद दो बड़े दीपक रखें.
एक दीपक चौकी के दाहिनी ओर रखें और दूसरा मूर्तियों के चरणों में.
पूजा कलश व अन्य पूजन सामग्री जैसे खील-पताशा,खीर सिन्दूर, गंगाजल, अक्षत-रोली,कमल का फुल कौडी मोली, फल-मिमोर पंख भी दीपावली का एक शुभ प्रतीक है

लक्ष्मी पूजन में दीपक जलाते समय, दीपक का मुंह पश्चिम दिशा में रखना शुभ माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिशा में मां लक्ष्मी का वास है. दीपक जलाने से जुड़े कुछ और नियम ये रहे:

दीपावली पर मां लक्ष्मी के सामने घी का दीपक अपने बाएं हाथ से जलाना चाहिए. वहीं, तेल का दीपक दाएं हाथ से जलाना चाहिए. घी के दीपक के लिए सफ़ेद रुई की बत्ती और तेल के दीपक के लिए लाल धागे की बत्ती शुभ मानी जाती है.
कभी भी खंडित दीपक नहीं जलाना चाहिए.
तुलसी के पौधे के पास दीपक रखना शुभ होता है.
रसोई के अंदर भी दीपक रखना चाहिए. दक्षिण-पूर्वी कोने पर भी दीपक रखा जा सकता है. घर की तिजोरी या पैसे रखने की जगह पर दीपक जलाने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है.
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इस दौरान घर के चारों कोनों में सरसों या तिल के तेल का इस्तेमाल करते हुए चौमुखी दीपक जलाना चाहिए.।

29 अक्टूबर- धनतेरस धन्वंतरि दिवस

 

महालक्ष्मी पुजन मे स्वयं पुजन करते समय गुलाबी या नये वस्त्र धारण करें ।
श्री मांतगी ज्योतिष ज्योतिर्विद पं अजय कृष्ण शंकर व्यास मोबाइल 8871304861




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